वांछित मन्त्र चुनें

अ॒ग्निमी॒ळेन्यं॑ क॒विं घृ॒तपृ॑ष्ठं सपर्यत। वेतु॑ मे शृ॒णव॒द्धव॑म् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnim īḻenyaṁ kaviṁ ghṛtapṛṣṭhaṁ saparyata | vetu me śṛṇavad dhavam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निम्। ई॒ळेन्य॑म्। क॒विम्। घृ॒तऽपृ॑ष्ठम्। स॒प॒र्य॒त॒। वेतु॑। मे॒। शृ॒णव॑त्। हव॑म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:14» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् (मे) मेरे (हवम्) देने-लेने योग्य व्यवहार को (वेतु) व्याप्त हो और (शृणवत्) सुने वैसे (ईळेन्यम्) प्रशंसा करने योग्य (कविम्) प्रतापयुक्त दर्शनवाले (घृतपृष्ठम्) प्रकाश घृत वा जल पृष्ठ में जिसके उस (अग्निम्) अग्नि का (सपर्यत) सेवन करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों की विद्या का अभ्यास करें, वे निरन्तर सुख को सेवें ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा विद्वान् मे हवं वेतु शृणवत् तथैवेळेन्यं कविं घृतपृष्ठमग्निं यूयं सपर्यत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निम्) (ईळेन्यम्) प्रशंसनीयम् (कविम्) क्रान्तदर्शनम् (घृतपृष्ठम्) घृतं दीपनमाज्यमुदकं वा पृष्ठे यस्य तम् (सपर्यत) सेवध्वम् (वेतु) व्याप्नोतु (मे) मम (शृणवत्) शृणुयात् (हवम्) ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये मनुष्या अग्न्यादिपदार्थविद्याभ्यासं कुर्य्युस्ते निरन्तरं सुखं सेवेरन् ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या विद्येचा अभ्यास करतात ती निरंतर सुख भोगतात. ॥ ५ ॥